कमी निकालने के लिए तो ज़माने भर के लोग है फिर क्यो खुद मे कमी निकाले हम।। कमी निकालने के लिए तो ज़माने भर के लोग है फिर क्यो खुद मे कमी निकाले हम।।
कुछ सवाल मन में किसी को देखकर उठते हैं । मैं भी कुछ सवाल अपनी कविता के माध्यम से कर रहा हूँ । कुछ सवाल मन में किसी को देखकर उठते हैं । मैं भी कुछ सवाल अपनी कविता के माध्यम से...
जात पात और धर्म बैठे तराजू की एक ओर हैं, समझ नहीं आता दूसरी ओर बैठा कौन है। जात पात और धर्म बैठे तराजू की एक ओर हैं, समझ नहीं आता दूसरी ओर बैठा कौन है।
उम्र का सूरज अब, ढलान पर जा रहा है। लगता है कि बुढ़ापा आ रहा है। उम्र का सूरज अब, ढलान पर जा रहा है। लगता है कि बुढ़ापा आ रहा है।
कविता है तो कवि है ,कवि है तो कविता जीवन की लय समझाती है जीवन सरिता। मधुरिम मधुरिम कविता है तो कवि है ,कवि है तो कविता जीवन की लय समझाती है जीवन सरिता। म...
माँ माँ